भारत क्या ऐतिहासिक बिजली संकट की कगार पर खड़ा है?
भारत में आने वाले वक्त में अप्रत्याशित बिजली संकट खड़ा हो सकता है. भारत में 135 कोयले पर आधारित बिजली संयंत्र हैं जिनमें से आधे से अधिक कोयले की तंगी झेल रहे हैं क्योंकि कोयला भंडार में गंभीर कमी आ गई है.
ऐसा क्यों हो रहा है?
ये संकट कई महीनों से पैदा हो रहा है. कोविड महामारी की दूसरी लहर के बाद भारत की अर्थव्यवस्था में तेज़ी आई है और बिजली की मांग भी अचानक बढ़ी है.
बीते दो महीनों में ही बिजली की ख़पत 2019 के मुकाबल में 16 प्रतिशत बढ़ गई है. इस बीच दुनियाभर में कोयले के दाम 41 फ़ीसदी तक बढ़े हैं जबकि भारत का कोयला आयात दो साल में सबसे निचले स्तर पर है.
भारत में यूं तो दुनिया में कोयले का चौथा सबसे बड़ा भंडार है, लेकिन ख़पत की वजह से भारत कोयला आयात करने में दुनिया में दूसरे नंबर पर है.
सरकार क्या कर सकती है?
भारत अपनी क़रीब 140 करोड़ की आबादी की ज़रूरतों को कैसे पूरा करे और भारी प्रदूषण करने वाले कोयले पर निर्भरता कैसे कम करे, हाल के सालों में ये सवाल भारत की सरकारों के लिए चुनौती बना रहा है.
डॉक्टर नंदी कहते हैं कि ये समस्या इतनी बड़ी है कि इसका कोई अल्पकालिक हल नहीं निकाला जा सकता है.
नंदी कहते हैं, "सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इसका दायरा बहुत बड़ा है. हमारी बिजली का एक बड़ा हिस्सा थर्मल पावर (कोयले) से आता है. मुझे नहीं लगता कि अभी हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं कि थर्मल पावर का कोई प्रभावी विकल्प ढूंढ सकें. मैं ये मानता हूं कि ये भारत के लिए एक चेतावनी है और भारत को संभलना चाहिए. लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारी ऊर्जा ज़रूरतों में कोयले पर निर्भरता को जल्द समाप्त किया जा सकेगा."
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